पुरूषों के वस्त्र
धोती :- कमर में पहनने का कपड़ा जो प्रायः चार मीटर लम्बा एवं 90 सेमी. चौड़ा होता है। आदिवासियों द्वारा पहने जाने वाली तंग धोती ढेपाड़ा / डेपाड़ा कहलाती हैं।
अंगरखी / बुगतरी (बंडी ) ग्रामीण क्षेत्र में पुरुषों के शरीर के ऊपरी भाग में पहना जाने वाला वस्त्र, पूरी बाँहों का बिना कॉलर एवं बटन वाला चुस्त कुर्ता जिसमें बाँधने के लिए कसें (डसें) होती है। यह सफेद रंग का वस्त्र है जिस पर कढ़ाई की जाती है।
ध्यातव्य रहे- राजस्थानी पोशाक जोधपुरी कोट को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली हुई है।
अचकन : अंगरखी का उत्तर (संशोधित) रूप।
साफा, पगड़ी, फलिया, पाग, पेंचा, बागा (फेंटा ) :- सिर पर लपेटे जाने वाला प्राय: सफेद एवं 5.5 मीटर लम्बा व 40 सेमी. चौड़ा होता है। उदयपुर की पगड़ी व जोधपुर का साफा प्रसिद्ध है। उदयशाही, अमरशाही, विजयशाही और शाहजहांनी पगड़ी के प्रकार हैं, तो मेवाड़ महाराणा के पगड़ी बाँधने वाला व्यक्ति छाबदार कहलाता है।
पोतिया :- भील पुरूषों द्वारा पगड़ी के स्थान पर बाँधा जाने वाला ।
टोपी :- पगड़ी की तरह ही सिर को ढकने वाला वस्त्र खांखसानुमा, चौपलिया, दुपलिया आदि टोपी के प्रकार है।
शेरवानी :- प्रायः मुसलमान पुरूषों एवं शादियों में हिन्दू पुरूषों के द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र जो कोटनुमा एवं घुटने से लम्बा होता है।
कमीज :- ग्रामीण पुरूषों के द्वारा धोती के साथ पहने जाने वाला कुर्तानुमा वस्त्र ।
चुगा (चोगा) :- अंगरखी के ऊपर पहना जाने वाला वस्त्र। ऊनी चोखा अमृतसर का प्रसिद्ध है।
पायजामा :- अंगरखी, चुगा और जामे के नीचे कमर व पैरों में पहना जाने वाला वस्त्र । बिरजस (ब्रीचेस) :- चूड़ीदार पायजामे के स्थान पर पहना जाने वाला वस्त्र अर्थात् पुरुषों का कमर से नीचे का वस्त्र |
घुघी (बरसाती ):- ऊन का बना वस्त्र जो सर्दी या वर्षा से बचाव हेतु ओढ़ा जाता है।
पछेवड़ा :- सर्दी से बचने के लिए पुरूषों के द्वारा कम्बल की तरह ओढ़े जाने वाला मोटा सूती वस्त्र पछेवड़ा कहलाता है।
आतमसुख :- सर्दी में ऊपर से नीचे तक पहने जाने वाला वस्त्र आतमसुख कहलाता है। सबसे पुराना आतमसुख सिटी पैलेस, जयपुर में रखा हुआ है।
कमरबंध (पटका) :- जामा या अंगरखी ऊपर कमर पर बाँधा जाने वाला वस्त्र, जिसमें तलवार या कटार घुसी होती है। अहमदाबाद एवं बनारस के पटके प्रसिद्ध है।
अंगोछा :- आदिवासी पुरूषों द्वारा सिर पर बाँधा जाता है। केरी भाँत का अंगोछा लोकप्रिय है।
ध्यातव्य रहे: रजाई के नीचे ओढ़ने का वस्त्र-सौड, पगड़ी पर धारण करने वाला जरीदार वस्त्र- बालाबन्द, घेर वाली पुरूषों की सर की पाग-बागौ, पगड़ी पर बाँधा जाने वाला वस्त्र- ऊपरणी तथा पगड़ी पर धारण करने वाला विशेष आभूषण-रतनपेच कहलाता है। 'तनसुख', 'गदर', 'गाबा' एवं 'डोढ़ी' पुरुषों के वस्त्र हैं।
स्त्रियों के वस्त्र
कुर्ती और काँचली • शरीर के ऊपरी हिस्से में पहना जाने वाला वस्त्र, जो बिना बाँह का होता है।
घाघरा, पेटीकोट, लहंगा :- कमर के नीचे एड़ी तक पहना जाने वाला घेरदार वस्त्र जो कलियों को जोड़कर बनाया जाता है। रेशमी घाघरा जयपुर का प्रसिद्ध है।
ओढ़नी, लुगड़ी (साड़ी) :- कुर्ती, काँचली व घाघरे के ऊपर शरीर पर पहना जाने वाला वस्त्र । पोमचा, लहरिया, चुनरी, मोठड़ा, धनक आदि लोकप्रिय ओढ़नियाँ है यह 2.10 से 2.50 मीटर लम्बी तथा 1.25 से 1.35 मीटर चौड़ी होती है। लप्पा, लप्पी, किरण एवं बाँकड़ी ये सब गोटे के भिन्न-भिन्न प्रकार हैं। ढींगला, भींडरिया, नाथद्वारिया मेवाड़ की ओढ़नियों के नाम हैं तो मारवाड़ में दामणी ओढणी का एक प्रकार है।
पीला पोमचा :- बच्चे के जन्म पर प्रसूता द्वारा पहने जाने वाली पीले रंग की ओढ़नी ।
लहरिया :- श्रावण मास में तीज पर पहने जाने वाली अनेक रंगों की (धारीनुमा) ओढ़नी डूंगरशाही ओढ़नियाँ जोधपुर में तैयार होती है। समुंद्र लहर नाम का लहरिया जयपुर में रंगा जाता है।
मोठड़ा :- लहरियें की धारियाँ जब एक-दूसरे को काटती हुई बनाई जाती है, तो वह मोठड़ा कहलाती है, जो जोधपुर की प्रसिद्ध है।
तिलका :- मुस्लिम औरतों का पहनावा जाता है।
आँगी :- बिना बाँह वाली चोली।
कापड़ी :- कपड़े के दो टुकड़ों को बीच में से जोड़कर बनाई गई चोली जो पीठ पर तनियों से बाँधी जाती है।
सलवार :- कमर से लेकर पाँवों में पहने जाने वाला वस्त्र ।
घघरी :- कुँवारी व स्कूली छात्राओं द्वारा पहना जाने वाला कमर के नीचे का वस्त्र । यह घाघरे (लहंगा) का छोटा रूप है।
कुर्ता :- ऊपरी हिस्सें में पहना जाने वाला वस्त्र।
शरारा : सलवार रूपी वस्त्र जो शरीर के नीचले हिस्से, पैरों में पहना जाता है।
कटकी: राजस्थान की आदिवासी अविवाहित युवतियाँ / बालिकाओं द्वारा ओढ़ी जाने वाली ओढ़नी कटकी कहलाती है।
आदिवासी स्त्रियों के वस्त्र
1. तारा भाँत की ओढ़नी
2. केरी भाँत की ओढ़नी
3. लहर भाँत की ओढ़नी
4. ज्वार भाँत की ओढनी
5. सावली भाँत की ओढ़नी
6. लूगड़ा
7. पावली भाँत की ओढ़नी
8. चूनड़ :- इस ओढ़नी में बिन्दियों का संयोजन होता है। 9. जाम साई साड़ी :- विवाह के समय पहना जाने वाला वस्त्र
जिसमें लाल जमीन पर फूल-पत्तियाँ होती है।
10. नान्दणा या नोंदड़ा :- आदिवासी स्त्रियों द्वारा पहना जाने वाला नीले रंग की छींट का वस्त्र ।
11. नौदणाः- आदिवासियों द्वारा पहने जाने वाला प्राचीनतम वस्त्र ।
12. रेनसाई :- लहंगे की छींट जिसमें काले रंग पर लाल एवं भूरे रंग
की बूटियाँ होती है।
ध्यातव्य रहे:- पर्दानशीन औरतों के सिर पर ओढ़ने का वस्त्र अवोचण
तथा पर्दानशीन स्त्रियों के पर्दा करने का वस्त्र चांदणी कहलाता है, तो भील जनजाति में कछाबू महिलाएँ पहनती हैं। जीनगरी कला-
यह कपड़ों की रंगाई की कला है, तो राजस्थान में लेटा, मांगरोल
एवं सालावास कपड़े की मदों की बुनाई के लिए जाने जाते हैं।