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राजस्थान की प्रमुख छतरियां

Deepak Meena

 


84 खम्भों की छतरी (बूंदी)- चौरासी खंभों की छतरी का निर्माण राव राजा अनिरूद्ध सिंह ने धाबाई देवा गुजर की स्मृति में देवपुरा गाँव (बूंदी) के निकट 1683 ई. में तीन मंजिला शिव उपासनार्थ करवाया था। इस छतरी के अन्दर विभिन्न प्रकार के चित्र अंकित हैं। इनमें मुख्य रूप से पशु-पक्षी आदि के चित्र पत्थर पर उकेरे गए हैं।

इस कलात्मक छतरी के खंभों पर जहाँ कामसूत्र के चौरासी आसनों को दर्शाते हैं वहीं चौरासी योनियों की याद दिलाते हुए इंसान को आस्तिक बनने की भी प्रेरणा देते हैं।


ध्यातव्य रहे- इसी को 'यूँसी महारानी की छतरी' भी कहते हैं।


अस्सी खंभों की छतरी- मूसी महारानी की 80 खंभों की छतरी (अलवर) अलवर दुर्ग के पास है। जो राजपूत स्थापत्य कला की अद्भुत मिसाल है। अलवर महाराजा बख्तावर सिंह लसवाड़ी की लड़ाई में मराठों के विरुद्ध अंग्रेजों की और से लड़े थे की महारानी मूसी की स्मृति में 1815 ई. में विनयसिंह द्वारा बनवाई गयी थी। दो मंजिला इस छतरी की पहली मंजिल लाल पत्थर व दूसरी मंजिल श्वेत संगमरमर से निर्मित है। छतरी की ऊपरी मंजिल में मुख्य छतरी के अन्दर बने रामायण और महाभारत के भित्ति चित्र व संगमरमर पर उत्कीर्ण लघुफलक उस समय की चित्र परम्परा व मूर्तिकला को प्रदर्शित करते हैं।

राजा मानसिंह प्रथम की छतरी- आमेर के राजा मानसिंह प्रथम की छतरी आमेर से 2 किमी. दूर हाड़ी पुरा गाँव में स्थित है। इस छतरी के चित्र जहाँगीरकालीन हैं।


ध्यातव्य रहे- राजा मानसिंह प्रथम की छतरी की स्थापत्य कला के समान कोलायत (बीकानेर) में 'साधु गिरिधापति की छतरी ' है।


गैटोर की छतरियाँ - नाहरगढ़ दुर्ग की तलहटी में बनी गैटोर की छतरियाँ जयपुर के शासकों का निजी श्मशान घाट है। जिसमें महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर महाराजा सवाई माधोसिंह द्वितीय तक के राजाओं और उनके पुत्रों की स्मृति में छतरियाँ बनवाई गई थी।


ध्यातव्य रहे- इसमें सबसे भव्य छतरी सवाई जयसिंह द्वितीय की है। जिसकी एक अनुकृति लंदन के केनसिंगल म्यूजियम में भी रखी गई है।

सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी-जयपुर के शासक सवाई माधोसिंह ने सिटी पैलेस (जयपुर) के जयनिवास उद्यान में सवाई ईश्वरी सिंह की छतरी बनवाई।


रणथंभौर की छतरी - रणथंभौर की छतरी का निर्माण हम्मीर देव ने अपने पिता जयसिंह की स्मृति में करवाया था। यह छतरी धौलपुर के लाल पत्थर से निर्मित तथा 32 खम्भों पर टीकी है। इसे ही 'न्याय की छतरी' भी कहते हैं।


मांडल (भीलवाड़ा) की छतरी- आमेर के जगन्नाथ कछवाहा की समाधि पर राजनगर (राजसमंद) के संगमरमर से 32 खंभों की विशाल छतरी है, जिस पर एक ही पत्थर से बना पाँच फीट ऊँचा शिवलिंग बना है। यह छतरी हिंदू व मुस्लिम स्थापत्य का अनूठा उदाहरण जोधपुर की रानियों की छतरियाँ-मंडोर में पंचकुंड के निकट कुल 49 छतरियाँ भव्यतापूर्ण है। इनमें रानी सूर्य कंवरी की छतरी 32 खम्भों पर स्थित सबसे बड़ी छतरी है तथा यहाँ महाराजा मानसिंह की भटियानी रानी की छतरी ऊँचे चबूतरे पर बनी हुई है।


जोगीदास की छतरी - उदयपुरवाटी (झुंझुनूँ) में स्थित जोगीदास की छतरी के भित्ति चित्र शेखावाटी के प्राचीनतम भित्ति चित्र हैं जिनको बनाने वाला चित्रकार देवा था।


केसर बाग की छतरियाँ- बूँदी से 4-5 किमी. दूर स्थित केसर बाग में बूंदी के शासकों तथा राज परिवारों की 66 छतरियाँ हैं। इनमें सबसे प्राचीन महाराज कुमार दूदा की तथा सबसे नवीन महाराव राजा विष्णुसिंह की है। इन छतरियों पर राजाओं के साथ सती हुई। रानियों की मूर्तियाँ भी उत्कीर्ण हैं।


देवी कुण्ड (बीकानेर)- बीकानेर शहर से 5 मील दूर देवी कुण्ड सागर के सामने कल्याण सागर के पास अवस्थित बीकानेर राजघराने का निजी श्मशान घाट यहाँ निर्मित राजा महाराजाओं एवं उनके परिवार की छतरियाँ में महाराजा सूरजसिंह की सफेद संगमरमर निर्मित छतरी प्रसिद्ध है।


संत रैदास की छतरी- मीरा के आध्यात्मिक गुरु संत रैदास की 8 खम्भों पर स्थित छतरी चित्तौड़गढ़ दुर्ग में स्थित है।


नैड़ा की छतरिया / टहला की छतरियाँ- ये छतरियाँ सरिस्का वन 'क्षेत्र (अलवर) के समीप नैड़ा अंचल में स्थित इन छतरियों में दशावतार का चित्रण किया गया है जिसमें काले और कत्थई वानस्पतिक रंग भी प्रयुक्त किये गये है। साथ ही छतरियों के गुंबद में अनेक पौराणिक की • आख्यान के चित्र भी बने हैं। इनमें 'मिश्रजी की छतरी /आठ खंभों की हिं छतरी' विशेष प्रसिद्ध है जिसे 1432 ई. के आसपास बनाया गया है।


मंडोर की छतरियाँ - मंडोर में स्थित छतरियों में प्रमुख रूप से ब्राह्मण देवता की छतरी, कागा की छतरियाँ, मामा-भान्जा की छतरी, गोरा धाय की छतरी प्रमुख है। जोधपुर से पाँच किमी. दूर ऋषि श्रेष्ठ काग भुशुंडि की तपोभूमि जहाँ ऋषि के तप से भगवती गंगा प्रकट हुई थी। जोधपुर नरेश विनयसिंह द्वारा शीतला देवी का मंदिर का निर्माण करवाया गया जिसके पास ही दीवान दीपचंद की छतरी स्थित है। महाराजा जसवंत सिंह की प्राण रक्षा हेतु उनके प्रधानमंत्री राजसिंह कूंपावत ने आत्म बलिदान किया जिसकी याद में कागा की छतरियों के मध्य प्रधानमंत्री की छतरी बनवाई गई।


ब्राह्मण देवता की छतरी - मेहरानगढ़ दुर्ग के तांत्रिक अनुष्ठान में जिस ब्राह्मण ने आत्म बलिदान दिया, उसकी छतरी मंडोर (जोधपुर) में पंचकुंड के निकट स्थित है।


मामा-भानजा की छतरी- मामा-भानजा की छतरी धन्ना और भीयां वीरों के नाम से भी जानी जाती है। धन्ना गहलोत तथा भीयां चौहान आपस में मामा-भानजे थे। इन्होंने जोधपुर नरेश अजीतसिंह के • प्रधानमंत्री एवं अपने स्वामी मुकुंद चंपावत की हत्या का बदला ठाकुर प्रतापसिंह उदावत से लेकर स्वामीभक्ति का परिचय दिया तथा अपना आत्मबलिदान किया। उनकी स्मृति में महाराज अजीत सिंह ने इस छतरी का निर्माण मेहरानगढ़ दुर्ग से ठीक पहले करवाया था ।


करोड़ों के कीर्ति धणी की छतरी- जोधपुर दुर्ग के भीतर स्थित जसोल ठाकुर के प्रधान पुत्र कीरत सिंह सोढ़ा की छतरी का निर्माण राजा मानसिंह ने करवाया था।


सेनापति की छतरी- जोधपुर में नागोरी गेट के पास स्थित यह छतरी जोधपुर नरेश मानसिंह के सेनापति इंद्रराज सिंघी की है।

गोरा-धाय की छतरियाँ - जोधपुर के पुराने स्टेडियम के पास दो छतरियाँ हैं जिनमें एक छ: स्तंभ पर तथा दूसरी चार स्तंभों पर खड़ी है जिसका निर्माण अजीतसिंह ने धायमाता गोराधाय की स्मृति में बनाई थी।


बख्तावर सिंह की छतरी- अलवर के राजा बख्तावर सिंह जयपुर के नरेश जगतसिंह के साथ जोधपुर के शासक मानसिंह से युद्ध करने गए। थे जहाँ पर वे वीरगति को प्राप्त हो गए उन्हीं की याद में मंडौर (जोधपुर) में 'बख्तावर सिंह की छतरी' बनाई गई है।


ध्यातव्य रहे- बख्तावर सिंह की एक अन्य छतरी अलवर में भी  स्थित है।


गंगा बाई की छतरी- महादजी सिंधिया की पत्नी गंगा बाई उदयपुर से आ रही थी तो गंगापुर (भीलवाड़ा) में उनकी मृत्यु हो गई उन्हीं की याद में यहाँ पर गंगा बाई की छतरी बनाई गई है।


बीस खंभों की छतरी / सिंघवियों की छतरियां- जोधपुर नरेश भीमसिंह के सेनापति सिंघवी अखैराज की छतरी प्रमुख है। 20 स्तंभों की बनी यहाँ की छतरियाँ नक्कासी के लिए प्रसिद्ध है। अहाड़ा हिंगोला की छतरी तथा जैसलमेर रानी की छतरी भी जोधपुर में स्थित है।


गोवर्धन-मारवाड़ क्षेत्र में गौ रक्षार्थ बलिदान देने वाले वीर पुरुषों की समाधि स्थल को गोवर्धन कहते हैं।


दाहरसैन स्मारक - अजमेर में नाग पहाड़ी के मध्य 1997 में अजमेर नगर सुधार न्यास द्वारा महाराजा दाहरसेन का स्मारक बनाया गया है।


गुसाइयों की छतरियाँ-मेड़ गाँव (विराट नगर-जयपुर) में 16वीं व 18वीं शताब्दी की तीन छतरियाँ बनी हुई हैं। उड़णा पृथ्वीराज की छतरी मेवाड़ के पृथ्वीराज सिसोदिया बारह खंभों की यह छतरी कुंभलगढ़ दुर्ग में बनी हुई है। खम्भों पर विभिन्न प्रकार से नारियों के चित्र अंकित हैं।


राणा प्रताप की छतरी-राणा प्रताप की आठ खम्भों की छतरी चावण्ड के समीप बाण्डोली गाँव में स्थित है जिसका निर्माण अमरसिंह राठौड़ ने करवाया।


राणा सांगा की छतरी- यह आठ खम्भों पर निर्मित राणा सांगा की छतरी मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) में स्थित है। जोधसिंह की छतरी-बत्तीस खम्भों पर निर्मित जोधसिंह की छतरी बदनोर (भीलवाड़ा) में स्थित है।


अकबर की छतरी -छतरी भरतपुर जिले में स्थित बयाना दुर्ग के समीप अकबर की छतरी स्थित है।


बन्जारों की छतरी (लालसोट, दौसा) - यह बन्जारों की छतरी छठी शताब्दी में निर्मित हुई। ये बंजारों की छतरियाँ अपनी अनुपम शैली के कारण प्रसिद्ध हैं। कुत्ते की यह छतरी रणथम्भौर दुर्ग कुक्कराज की घाटी में स्थित है। अमर सिंह की छतरी-वीर अमरसिंह राठौड़ की 16 खंभों की दो छतरी नागौर दुर्ग में स्थित है।


कपूरबाबा फकीर की छतरी - यह छतरी उदयपुर शहर के मध्य जगमंदिर के समीप स्थित है। इस छतरी का निर्माण शाहजहाँ ने तुर कपूर बाबा के सम्मान में करवाया था।

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